Tuesday 26 November 2013

लम्पट सर्वहारा - गिरिजेश



प्रश्न : 'लम्पट सर्वहारा' क्या है ?
उत्तर : मैंने जितना मार्क्सवाद को पढ़ा और समझा है, उसके अनुसार किसी व्यक्ति में सर्वहारा वर्ग की पृष्ठभूमि होना एक चीज़ है और सर्वहारा वर्ग की चेतना होना दूसरी चीज़. दोनों ही चीज़ें एक ही व्यक्ति में हों - यह भी ज़रूरी नहीं है. 

सर्वहारा की वर्गीय चेतना से लैस व्यक्ति किसी भी वर्गीय पृष्ठभूमि का हो सकता है, वह अपने को डी-क्लास करके सर्वहारा वर्ग के संघर्ष का वर्गचेतन योद्धा बन सकता है. उसका मोर्चा कोई भी हो, उसकी उपयोगिता आन्दोलन के लिये महत्वपूर्ण होती है और उसका योगदान उसके लिये सम्मानप्रद होता है. इसके अगणित उदहारण राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय क्रान्तिकारी आन्दोलन में बिखरे पड़े हैं. 

वहीं सर्वहारा वर्ग में जन्म लेने वाले भी असंख्य लोग ऐसे हैं, जिनको किसी भी तरह से जल्दी से जल्दी ख़ुद अपने और अपने परिजनों के लिये सारी सुविधाएँ जुटा लेने की हाही मची रहती है. उनमें से कुछ पेशेवर अपराधियों के गिरोह में भर्ती होना चाहते हैं, कुछ तरह-तरह की झप्सटई करके अमीर बनने की कोशिश करते हैं, कुछ रंग-बिरंगी पार्टियों के नेताओं के छोटे-बड़े चमचे और थाने-कचहरी के दलाल बन जाते हैं, तो कुछ घूसखोर अधिकारी बनने के लिये रात-दिन एक किये रहते हैं. वे ख़ुद को बेचने के चक्कर में मौका ताड़ते रहते हैं. अपने लक्ष्य और दृष्टिकोण में वे पूरी तरह से पूँजीवादी होते हैं. और तय है कि उनकी प्रतिभा और क्षमता को प्रत्यक्ष या प्रच्छन्न रूप में खरीदने वाला वर्ग केवल सम्पत्ति ही नहीं, कुछ अक्ल भी रखता ही है. 

इनमें से कुछ तत्व क्रान्तिकारी आन्दोलन की कतारों में भी घुस जाते हैं. महान लेनिन द्वारा ऐसे तत्व ही क्रान्तिकारी आन्दोलन के 'भीतरघातिये' और 'उकसावेबाज़' कहे गये हैं. इनको ही 'लुम्पेन प्रोलेतारिया' कहा जाता है. ये क्रान्तिकारी होने का सफल अभिनय तो करते रहते हैं, परन्तु ये किसी भी तरह से प्रतिबद्ध क्रान्तिकारी नहीं होते. मूलतः ये केवल अवसरवादी होते हैं. मजदूर वर्ग के आन्दोलन को आगे बढ़ाने में इनकी कोई भूमिका नहीं होती. इसके उलटे ये मजदूर वर्ग के आन्दोलन के भीतर तरह-तरह से तोड़फोड़ करके शोषक वर्गों के निहित हितों को मूर्तमान करने में लगे रहते हैं. 

लम्पट सर्वहारा तत्व बार-बार तरह-तरह से षड्यन्त्र करते रहते हैं और आन्दोलन को नुकसान पहुँचाते रहते हैं. अपने सर्वहारा परिवार में जन्म लेने की वर्गीय पृष्ठभूमि के बावज़ूद अपने स्वार्थी चरित्र के चलते ये सत्ता और व्यवस्था पर काबिज़ जनशत्रुओं के जी-हुज़ूरिये और वेतनभोगी चाकर होते हैं. ये उन तक आन्दोलन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण और गोपनीय सूचनाएँ सही समय पर पहुँचाते रहते हैं. ये आन्दोलन के नेताओं को गिरफ्तार करवाने में या उनकी ह्त्या करने में सक्रिय भूमिका अदा करते हैं. ये आन्दोलन को विपथगामी करने में भी आगे बढ़ कर अपनी सक्रियता प्रदर्शित करते हैं. दुश्मन से मिल सकने वाले पुरस्कार का लालच ही इनसे कुल्हाड़ी के पीछे लगी डेढ़ हाथ की लकड़ी की भूमिका अदा करवाता है और ये समूचा जंगल धराशायी करने वाले गद्दार बन जाते हैं.

शोषण पर टिकी जनविरोधी व्यवस्था को बनाये रखने में अपनी सहायक भूमिका के चलते ये व्यवस्था के कार्य-पालिका, विधायिका, न्याय-पालिका और मीडिया के साथ पाँचवे खम्भे के रूप में काम करते हैं और इनको 'पंचमांगी' कहते हैं. ये आस्तीन के साँप केवल "घीसू-माधो" की तरह अमानुषीकरण के शिकार नहीं होते. इनके 'व्यक्तित्व का विखण्डन' नहीं हुआ रहता. ये सचेत गद्दार होते हैं. इनको अपने किये पर कोई अफ़सोस नहीं होता. उलटे अपनी मोटी खाल के चलते ये पूरी तरह से बेहयाई पर अमादा होते हैं. 

“जब वामपन्थी पार्टियाँ मशहूर हो जाती हैं और ख़ास कर जब सत्ता में स्थान बना लेती हैं, तब उन्हें भी, मजदूर और किसान आन्दोलन की तरह, सबसे बड़ा खतरा इन्ही लुम्पेन सर्वहारा से होता हैं. और वामपन्थी पार्टियों का ख़ात्मा ये ही करते हैं. सी.पी.आई. और सी.पी.एम. को इन्हीं से बचना चाहिए था. सोवियत यूनियन को भी इन्हीं ने ख़त्म कर डाला. असली वामपन्थी पीछे छूटते गये और अवसरवादी वामपन्थियों ने कहीं ज़्यादा ज़ोर से वामपन्थी नारे लगा कर आगे आते चले गये. सर्वहारा को वह वर्ग मान कर लिखा गया है, जिसके पास उत्पादन के साधन न हों. सत्तर साल की अवधि में सोवियत-संघ में सभी इसी कटेगरी में आ गये थे. उन मौकापरस्तों को बहुत से महत्वपूर्ण पदों पर काबिज़ होते देखा है. जो दिल से वामपन्थी नहीं थे, पर इतनी ज़ोर से वामपन्थी नारे लगाते थे कि कई वामपन्थी फ़ीके नज़र आते थे और धीरे-धीरे नेपथ्य में विलीन हो जाते थे. वही हाल यहाँ भी हुआ.” – Reena Satin

केवल क्रान्तिकारी नेतृत्व की सक्रिय और सतर्क निगरानी ही ऐसे तत्वों की 'पर्जिंग' कर सकती है. 
(सौजन्य - साथी Tiwari Keshav )

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