Monday 12 May 2014

चुनाव 2014 का सच - Bhuvan Joshi


वर्तमान चुनावों में यह बात साफ़ हो गयी कि विभिन्न राजनितिक दलों के पीछॆ कम्पनिओ के पैसे (काले) का इस्तेमाल जम के हुआ यानि राजनितिक दल कम्पनिओ के दलालों के रुप में कम करते हे. ठीक इसी कारण कोई भी दल भ्रष्टाचार या विकास के कॉर्पोरेट मॉडल के मुद्दे पर ज़्यादा नही बोला. क्योकि भ्रष्टाचार कॉर्पोरेट मॉडल कि जड़ हे ओर कॉर्पोरेट विकास का मतलब जनता कि लूट हे. इसीलिये धर्मोन्माद, जातिवाद और निजी हमलों पर ज़्यादा जोर दिया गया हे. परंतु प्रश्न उठता हे कि यदि कॉर्पोरेट दलाल ही सत्ता पर बैठेंगे तो चुनावों कि क्या जरुरूत हे?

इस बात का उत्तर यह हे कि जनता को इस भ्रम में रखना जरूरी हे कि यह उनकी चुनी हुई सरकार हे. इन चुनावों को लोकतन्त्र का उत्सव बताया गया जिसका असली रुप सारी जनता देख् चुकी हे. इसलिए लगातार लगभग एक साल तक कॉर्पोरेट मीडिया से लेकर अन्य सभी माध्यमों का उपयोग इस बात के लिए गया कि इन राजनितिक दलों को अलग-अलग पदविया देकर उन्हें लोकतन्त्र के झंडाबरदार के रुप में दिखाया गया और जनता को बार-बार याद दिलाया गाया कि उनका मतदान जरूरी हे, श्री आदवानी ने तो यहा तक कह दिया कि मतदान अनिवार्य कर देना चाहिए और जो वोट ना दे उसके वोट देने का अधिकार छीन लेना चाहिये. 

यानी जो भी हो जनता को डराकर-धमकाकर, बहलकर-फुसलाकर कॉर्पोरेट दलालों को चुनने के लिए बाध्य करना चाहिये क्योंकि यदि यह दिखावे के लोकतन्त्र का लबादा उतर गया तो जनता को ठगा नही जा सकता हे.
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह हे कि 90 के दशक से अल्पमत या गठबंधन सरकारे ही सत्ता में रही हे. इस बार भी यही होगा. आख़िर ऐसा क्यो हो रहा हे कि आज कोई भी दल सही मायने में राष्ट्रीय दल नही रह गया हे और अकेले दम पर सरकार नही बना सकता हे? यानि कोई भी कॉर्पोरेट एजेंट पार्टी अकेले दम पर सरकार नही बना सकती? 

इसका कारण हे कि भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न पूँजीपतियों/कॉर्पोरेट ने प्राकृतिक सन्साधनो और बाज़ार पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया हे लेकिन प्रतिद्वंद्वी पूँजीपति/कॉर्पोरेट से अपने कब्जे के संसाधनों कि रक्षा तथा अपने कब्जे के इलाकों में बढ़ोतरी के लिए ये कॉर्पोरेट आपस में संघर्ष करते हे जिसके लिए इन्होंने अपने स्व्यं के या कुछ अन्य को कॉर्पोरेट के साथ मिलकर अपने अलग-अलग राजनितिक दल बना लिए हे और इन कॉर्पोरेट में हुए समझौते के अनुसार इनके पालतू राजनितिक दल आपस में गठजोड़ कर सरकार बना लेते हे और समझौता टूटने पर अलग हो जाते हे. 

यही नही ये कॉर्पोरेट अपने हित साधने के लिए आतंकवादियों को तक पैदा करते हे, उल्फा का टाटा और खालिशतानी आतंकवादियों का पेप्सी कोला द्वारा पैदा किया जाना इसके उदाहरण हे. इस प्रकार सभी तरीकों जैसे राजनितिक दलों, धनबल, आतंकी गतिविधियाँ आदि, का प्रयोग ये पूँजीपति/ कॉर्पोरेट अपने प्राकृतिक संसाधनों तथा बाज़ार पर अपना नियंत्रण रखने तथा उसको बढ़ाने के लिए करते हे. ये चुनाव भी इनके इसी तरीके का इस्तमाल करना हे. 

चुनाव परिणाम आने के बाद इन पूँजीपतियों/कॉर्पोरेट के समझौते के हिसाब से ही सरकार बनेगी और इनके द्वारा चुनाव खर्च में लगाया गया काला धन जनता से सूद समेत वसूला जायेगा और सरकारी चुनाव खर्च करो के जनता से वसूला जायेगा.

Thursday 1 May 2014

क्रान्तिकारी एकजुटता ज़िन्दाबाद !



क्रान्तिकारी एकजुटता ज़िन्दाबाद !
मई-दिवस के अवसर पर विशेष अनुरोध :

प्रिय मित्र, मेहनतकशों की एकता के आह्वान को लागू करने के लिये अनेक प्रयास जारी हैं.
इनमें से ही एक "PRO PEOPLE SOLIDARITY FORUM AGAINST EXPLOITATION, OPPRESSION AND COMMUNAL HATRED" के गठन का प्रयास रहा है.
मैं एक बार फिर से आपसे इस प्रयास की कल्पना को मूर्तमान करने के लिये अपनी पहल करने का अनुरोध कर रहा हूँ.
मई-दिवस के अवसर पर यह सन्देश आपकी सलाह जानने के मकसद से भेज रहा हूँ.
आपने प्रो-पीपल सॉलिडेरिटी फोरम (अगेन्स्ट एक्स्प्लॉयटेशन, ऑप्रेसन ऐन्ड कम्यूनल हेट्रेड) के गठन के प्रयास में अपनी भागीदारी की सहमति दी है.
मैं इसके लिये आपके प्रति आभार व्यक्त कर रहा हूँ.
यह प्रयास अभी तक अपनी पहली बैठक तक भी नहीं पहुँच सका.
यह प्रयास गत लगभग दो वर्षों से अधिक से अब तक लम्बित रहा है.
इस प्रयास के लिये ली गयी पहली पहल से अभी तक का समय केवल पहली बैठक की प्रतीक्षा करने में नष्ट हुआ है.
हमारी एकजुटता की दृष्टि से यह समय अतिशय महत्वपूर्ण रहा है.
आने वाले समय में यह आदमखोर व्यवस्था और भी नंगा फासिस्ट रूप लेने जा रही है.
हम सब को इस परिस्थिति में निकट भविष्य में और भी भीषण समस्याओं से दो-दो हाथ करना ही पड़ेगा.
इस विलम्ब के पीछे कतिपय तकनीकी दिक्कतें रही हैं.
पहले तो इसके ब्लॉग का नाम http://ppsfin.blogspot.in/ ही गूगल की नाम-नीति के अनुरूप नहीं रखा जा सका था.
दूसरे इस ब्लॉग के पासवर्ड को जिन साथियों के बीच वितरित किया गया था, उनमें से कुछ ही लोगों ने उस पर लिखने में रुचि ली.
ब्लॉग के ई-मेल ppsfindia@gmail.com के सहारे लिखने की अपेक्षा जिन साथियों से की गयी थी, उनमें से भी इक्का-दुक्का लोगों ने ही उस तक अपना मेल भेजा.
तीसरे इसके नाम को सुधारने और नया नाम चुनने का काम भी अभी तक नहीं किया जा सका.
चौथे कुछ मित्रों ने घोषित तौर पर अथवा सन्देश के माध्यम से अपनी और आगे हिस्सेदारी जारी रखने से इन्कार कर दिया.
पाँचवे एक ज़िम्मेदार और नेतृत्वकारी साथी के सामने एक के बाद एक आने वाली व्यक्तिगत समस्याओं में उनके उलझे होने के चलते बैठक की योजना अभी तक टलती गयी.
मेरी इस बार की 22-23 अप्रैल की दो दिनों की दिल्ली-यात्रा का उद्देश्य आमने-सामने बैठ कर इस बैठक की योजना को अन्तिम रूप देना भी था.
इस मुलाकात में इस प्रयोग को आगे जारी रखने के मूल प्रश्न पर ही एक वरिष्ठ मित्र का नकारात्मक मत सामने आया.
उनका सुझाव था कि ऐसा ही एक फोरम “Peoples Alliance for Democracy and Secularism (PADS)” को कॉमरेड राव Battini Sreenivasa Rao गठित कर रहे हैं.
कॉमरेड राव Battini Rao का फेसबुक लिंक यह है :https://www.facebook.com/battini.rao
उनके फ़ोरम का लिंक यह है : http://padsindia.blogspot.in/
उसी में इस योजना को समाहित कर दिया जाये.

हम सबके वरिष्ठ कॉमरेड Mohan Shrotriya sir 
से मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिये मेरी फोन से बात हुई.
उन्होंने आप सब से आपकी सलाह जानने के लिये सन्देश भेजने की सलाह दी.
उनका ख़ुद का मत है –

“हिन्दी पट्टी में इस काम की व्यवस्थित शुरुआत और फैलाव की ज़रूरत के मद्देनज़र, बेहतर हो कि हिन्दी के वामपन्थी लेखक इसके केंद्र में रहें.
एक दो_दिन का कार्यक्रम दिल्ली में रखा जाये.
आपसी सहयोग से उसके आयोजन का खर्च निकाल लिया जाये.
दिल्ली के स्थानीय मित्र ही आयोजन की ज़िम्मेदारी को संभाल सकते हैं.
और मित्रों की राय आने दीजिए.
उसके बाद एक ठोस योजना प्रस्तावित करके, ‪#‎सहमतों‬ को आमंत्रित किया जाये.”

उनका मत आने के बाद ही मैं आप तक यह सन्देश भेज रहा हूँ.
मैं इस विलम्ब के लिये पूरे तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी स्वीकार कर रहा हूँ.
इसके लिये मैं ग्लानि महसूस कर रहा हूँ, खेद व्यक्त कर रहा हूँ और स्पष्ट शब्दों में आत्मालोचना कर रहा हूँ.
कृपया मेरा मार्गदर्शन करें कि इस परिस्थिति में क्या निर्णय लिया जाये.
आपके सन्देश की प्रतीक्षा में
आपका अपना गिरिजेश

सत्ता द्वारा फैलाये जाने वाले युद्धोन्माद के प्रतिरोध की अपील - Bhuvan Joshi


7 अप्रैल 2014 को भाजपा का घोषणापत्र जारी करते समय टाइम्स नौउ के पत्रकार के स्वदेशी के प्रश्न पर श्री मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि "स्वदेशी" का मतलब बैलगाड़ियों के युग में लौटना नही हे बल्कि इसका मतलब "राष्ट्रीय गर्व", "National pride" हे. इसके बाद बाबा रामदेव ने मीडिया के एक साक्षात्कार में कहा कि वो अफगानिस्तान से "जावा", "सुमात्रा" तक एक अखंड भारत बनाना चाहते हे. यह बात जग जाहिर हे कि बाबा रामदेव मोदी का प्रचार कर रहे हे. इसके बाद श्री मोदी का दावूद इब्राहिम तथा हिमांचल प्रदेश में कैप्टन बत्रा का नाम लेकर प्रचार करना तथा लगभग सभी पार्टियों द्वारा अंध-राष्ट्रवाद और धार्मिक उन्माद भड़काया गया. अभी कॉर्पोरेट मीडिया भी अंध-राष्ट्रवाद को भड़काने में लगा हे. भारत कि खुफिया अजेंसिया भी भारत सरकार के विदेशों में कूटनीतिक और सामरिक अभियानों कि चर्चा कर रहे हे. ये सब बातें निश्चित रुप से इस बात कि ओर इशारा करती हे कि आनेवाले समय में भारत सरकार विदेशों में कूटनीतिक और/या सैनिक हस्तक्षेप को बढ़ायेगी. 

हालाँकि 1947 में सत्ता हस्तातरन के समय से ही भारत सरकार को यह अधिकार मिल गया कि वो नेपाल, भूटान, सिक्किम (जिसे बाद में भारत में सम्मिलित कर लिया गया), मालदीव, मौरिसश इत्यादि देशों में कूटनीतिक/ सैनिक हस्तक्षेप का अधिकार था. लेकिन वर्तमान में एशिया के विश्व पूँजी का केन्द्र बनने से इस क्षेत्र में वैश्विक पूँजी का निवेश हुआ और उत्पादन क्षमता स्थापित हुई. वर्तमान में विश्व पूँजीवाद, जिसका प्रतिनिधत्व वैश्विक कम्पनिआ करती हे, संकट से गुजर रहा हे. इस संकट का निपटारा केवल बाज़ार बढ़ाकर हो सकता हे लेकिन समूची दुनिया पहले ही इस बाज़ार के दायरे में आ चुकी हे. 

अब केवल इसका केवल दोबारा बँटवारा हो सकता हे जिसके लिए ये वैश्विक कम्पनिआ एक दूसरे का बाज़ार छीनने की कोशिश में लग जाती हे और इसके लिए ये अपने राजनितिक विभागों यानि सरकारों का उपयोग करती हे. चीन तथा भारत के बड़े देश होने के कारण तथा इनकी सैन्य क्षमता अधिक होने के कारण इन सरकारों का उपयोग वैश्विक कम्पनिओ के ये गुट एसिया के स्तर पर तो अवश्य ही करेंगे. इस प्रकार भारत सरकार के विदेशों में चलाये जानेवाले कूटनीतिक/ सैन्य अभियानों में बढ़ोतरी होने कि प्रबल संभावना हो गयी हे.

भारत कि आम जनता के लिए इसके दोहरे मायने हे. एक सरकार द्वारा वसूले गए करो का बोझ उसे सहना होगा और विदेशों में चलनेवाले सैन्य अभियानों के लिए अपने सगे-संबंधी फौजियों की बलि इन वैश्विक कम्पनिओ के लिए बाज़ार हथियाने के लिए देनी होगी, दूसरे, अन्य देशों की जनता का इन वैश्विक कम्पनिओ के मुनाफे के लिए खून बहाना होगा. 

भारत कि जनता को यह कदम उठाना ही पड़ेगा कि वैश्विक कम्पनिओ के हित में चलाये जां रहे इन युद्धो का विरोध करे अन्यथा उसके पास इन युद्दो में अपनी कमायी और अपने भाई खोने के सिवा कुछ नही मिलेगा. साथ ही भारत की जनता को स्वयम को वैश्विक कम्पनिओ द्वारा विश्व स्तर चलये जानेवाले इस खून-खराबे में जबर्दस्ती शामिल कराये जाने के अपराध से अपने को बचाने का प्रतिरोध करना होगा.

निम्न पोस्ट पर लेखक की 'पक्ष-विपक्ष की नूरा कुश्ती' के बारे में यह कमेन्ट भी महत्वपूर्ण है.
https://www.facebook.com/girijeshkmr/posts/10202104318477286?comment_id=10202109155758215&offset=0&total_comments=8&ref=notif&notif_t=share_comment

"अब तक लगभग सभी राजनिटिक दलों के घोशनापत्र आ चुके हे. आौर जो आनेवाले हे वो भी इसी तर्ज पर होंगे. इन सभी घोशनापत्रों में इसी बात कि पुष्टि की गयी हे कि अगली सरकार वैश्विक कम्पनिओ की वैश्विक संस्थाओं द्वारा तय मुद्दों पर ही कम करेगी. हमने 08.03.2014 की पोस्ट में लिखा था:- 
“Whoever comes to power, it has to follow the general agenda of next Govt. which has been fixed by IMF, UNCTAD, WTO etc. :- 
1) expenditure on infrastructure to be increased to let the foreign & native corporate earn more profits, 
2) low taxation on corporate. This simply means lowering expenditure for public welfare scheme & more tax on people to let the corporate be benefited. 
3) to fill the greed of corporate supplying them cheap labour by skill development, 
4) providing money collected from public like EPF, CPF, PPF etc called Sovereign Wealth Funds (SWF), to the corporate to earn profit from public money, 
5) continuation of privatization, liberalization & globalization, general agreement on trade & tariffs, general agreement on trade in services, trade related intellectual property rights, trade related investment measures which were being implemented at dictate of IMF, UNCTAD & WTO etc in favour of corporate & against the people of India. 
In particular, the winning alliance representing majority of corporate will make tit-bit changes to benefit the majority section which forms Govt. But, people of India shall understand that these corporate agent parties can not deviate from agenda set by their master corporate & their Global organisation/s.” 

आइए देखे किस प्रकार देश कि दो बड़े दलों ने कैसे वैश्विक कम्पनिओ की नीति निर्धारक वैश्विक संस्थाओं के आदेश को कापी- पेस्ट करके अपने घोशनापत्र बनाये हे. 

काँग्रेस का दिनांक 26.03.2014 को जारी 2014 के चुनावों का घोशनापत्र में कहा गया हे:- 
1) 100 days agenda to reach high growth trajectory, 
2)avoiding retroactive taxation which deters foreign investment,
 3)$ 1 trillion investment in infrastructure, 
4)10 crore jobs through skill development,
 5)good & services tax and direct taxes code in one year. 

भाजपा का दिनांक 07.04.2014 को जारी घोशनापत्र कहता हे:-1) Infrastructure- 100 new cities enabled with technology & infrastructure, high speed rail & agri-rail network, 
2) reforms in investment, Banking reforms, fiscal discipline and policy framework that encourages foreign &domestic investment, 3) tax reforms –General sales tax & direct tax code, 
4)National multi skill mission, 
5) Single national agricultural market. Certain issues not included includes “disinvestment (read privatisation) commission.

हालाँकि इन घोशनापत्रो पर लोक लुभावन मुद्दों का मुल्लम्मा चढ़ा दिया गया हे. साथ ही दोनों दलों ने धार्मिक उन्माद को भड़काने के लिए "धर्म-निरपेक्षता" या "हिन्दुत्व" की मलाई लगा दी हे तो भी इन्होंने अपने मालिकों के प्रति अपनी वफादारी दिखा दी हे.

इस प्रकार यह तय हे कि जो भी सरकार बनाए वह् इन वैश्विक संस्थाओं द्वारा वैश्विक कम्पनिओ के पक्ष में बनाये गए मुद्दों पर ही कम करेगा. राजनितिक दलों के अतिरिक्त संचार माध्यम आौर चुनाव आयोग भी लोगो को चुनावों में बढ़ चढ़कर भागीदारी करने के लिए कहाँ रहे हे. जब इनसे भी काम बनता नही दिख रहा हे तो धार्मिक उन्माद, जातिवाद, प्रांतवाद आदि को फैलाकर लाशों के ऊपर अपनी राजनीति कर रहे हे.

मुख्य बात यह हे कि कम्पनिओ का विकास मानव विकास का विरोधी हे, यह जनता को घोर गरीबी, कुपोषण, भुकमरी में रखता हे. इसीलिये जरूरी हे कि कम्पनिओ के विकास के मुकाबले मानव विकास के मुद्दे को सामने लाया जाएँ. कम्पनिओ के मुनाफे बढ़ने कि जगह मानव की हालत सुधारने के मुद्दे को आगे लाया जाएँ. इसके लिए जनता का एक घोशनापत्र बनाया जाएँ आौर इन जनविरोधी नीतिओ के सामने रखा जाएँ. 

जनघोशनापत्र में निम्न मुद्दे शामिल किए जां सकते हे:- 
1) सभी को निशुल्क और समान शिक्षा, 
2) सभी को निशुल्क आौर समान चिकित्सा, 
3) शिक्षा के अमुरूप सबको रोजगार, 
4) सबको मुख्य आवश्यकताओं यानि रोटी, कपड़ा आौर मकान आदि, के आधार पर न्यूनतम वेतन/मजदूरी, 
5) एक तरफ़ उत्पादको आौर दूसरी तरफ़ उपभोक्ताओं की सहकारी समितिया बनाकर उनके बीच सीधा व्यापार, 
6) खेती आौर उद्योगों में सहकारी समितिया बनाकर खेती आौर उद्यौगो पर जनता का मालिकाना. 
7) मुनाफे के बजाए समाज की जरूरत को उद्देश्य बनाकर देश में उत्पादन की नीतियाँ बनाना. इनमें अन्य मुद्दे भी शामिल किए जां सकते हे

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