Thursday 7 November 2013

सवाल कलम का - गिरिजेश




प्रिय मित्र, शायद हमारा देश ही दुनिया का वह इकलौता देश है, जहाँ कलम-दवात की पूजा होती रही है और यहीं पर दुनिया में सबसे अधिक निरक्षर भी बसते रहे हैं. कलम की मार लाठी से बारीक़ होती है. पीढ़ियों से महीन लोग कलम की मार करते रहे हैं. बेबस मजलूमों पर कलम की बारीक मार करने वाले इन चालाक लोगों ने ही अधिकतम लोगों को पढ़ने-लिखने से रोकने की साज़िश भी इसी देश में हज़ारों वर्षों से सफलतापूर्वक रची है और अभी भी उनकी यह साज़िश जारी है. ऐसी हर पूजा और और उनमें संलग्न पुजारियों के आचरण के बारे में सोचने पर उनकी मक्कारी दिखने लगती है. और फिर उनसे केवल नफ़रत ही होती है.

कलम हथियार की तरह जब शोषक वर्गों के हाथ में होती है, तो उसे अत्याचार के लिये इस्तेमाल किया जाता है. जब वही कलम चाटुकार के हाथ में होती है, तो उसे चारण-कर्म के सहारे और पुरस्कृत होने के लिये इस्तेमाल किया जाता है. जब कलम पर न्यायकर्मी काबिज़ होता है, तो वह व्यवस्था के चाकर के रूप में न्याय की जगह निर्णय करने लगता है. कलम पर पकड़ रखने वाला शिक्षक नयी पीढ़ी में से कलम के फ़नकार गढ़ता है. 

मगर जब वही कलम धारदार तेवर के साथ हक़, इन्साफ और इन्सानियत की ख़िदमत में संकल्पबद्ध विद्रोहियों के हाथ में आती है, तो उससे चिनगारियाँ बिखरती हैं, अन्धकार थरथराता है और मानवता का प्रगतिपथ आलोकित होता है. यह पूरी तरह केवल और केवल कलमकार पर निर्भर है कि वह अपनी दक्षता का इस्तेमाल जन के हित में करता है या उसके विरोध में. 

मुझे कलम के सिपाही प्रेमचन्द की याद आ रही है.
मुझे कलम के फ़नकार गोर्की और रसूल हमज़ातोव की याद आ रही है.
मुझे निरक्षर कबीर और सुशिक्षित तुलसी की याद आ रही है.
मुझे मार्क्स और माओ की याद आ रही है.
मुझे गाँधी, अम्बेदकर और भगत सिंह की याद आ रही है.
मुझे मुक्तिबोध और राहुल सांकृत्यायन की याद आ रही है.
मुझे साहिर और फैज़ की याद आ रही है.
मुझे हावर्ड फ़ास्ट और लाल बहादुर वर्मा की याद आ रही है.

क्या मुझे यह उम्मीद करनी चाहिए कि आपकी कलम भी जन-स्वर को ध्वनित करने के लिये आजीवन प्रतिबद्ध रहेगी !
क्या आपकी कलम भी उनकी ही तरह एक के बाद एक हर बार एक और नया कमाल करती चली जायेगी !
क्या मुझे आपकी कलमकारी पर गर्व बना रह सकेगा !
उम्मीद है आप निराश नहीं करेंगे !
ढेर सारे प्यार के साथ - आपका गिरिजेश

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