Monday 30 September 2013

शहीदेआज़म पर कुछ हालिया टीपें

आजकल के हालात पर भगत सिंह का बयान ?

''.......भारत साम्राज्यवाद के जुए के नीचे पिस रहा है. इसमें करोड़ों लोग आज अज्ञानता और ग़रीबी के शिकार हो रहे हैं. भारत की बहुत बड़ी जनसंख्या जो मज़दूरों और किसानों की है, उनको विदेशी दबाव एवं आर्थिक लूट ने पस्त कर दिया है. भारत के मेहनतकश वर्ग की हालत आज बहुत गंभीर है. उसके सामने दोहरा ख़तरा है - विदेशी पूंजीवाद का एक तरफ़ से और भारतीय पूंजीवाद के धोखे भरे हमले का दूसरी तरफ़ से ख़तरा है. भारतीय पूंजीवाद विदेशी पूंजी के साथ रोज़ाना बहुत से गठजोड़ कर रहा है.

भारतीय पूंजीपति भारतीय लोगों को धोखा देकर विदेशी पूंजीपति से विश्वासघात की कीमत के रूप में सरकार में कुछ हिस्सा प्राप्त करना चाहता है. इसी कारण मेहनतकश की तमाम आशाएं अब सिर्फ़ समाजवाद पर टिकी हैं और सिर्फ़ यही पूर्ण स्वराज और सब भेदभाव खत्म करने में सहायक हो सकता है.''

( हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन के घोषणा पत्र का एक अंश , समझा जाता है कि इस घोषणा- पत्र को भगत सिंह के निर्देशों के अनुसार करतार सिंह के छद्मनाम से भगवतीचरण वोहरा ने लिखा था.)


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भगतसिंह किस विचारधारा के थे , इसके बारे में उन्होंने खुद लिखा है . किसी भ्रम की गुजाइश नहीं है .हिन्दू राष्ट्रवाद और मुस्लिम अंतर्राष्ट्रीयतावाद भगतसिंह की विचारधारा नहीं थी . इन विचारों का समर्थन करना भगत सिंह , आज़ाद और अशफाक की शहादत के साथ सीधी गद्दारी है . उनके विचारों और उनके सपनों और उनकी शहादत से अलग कर के भगत सिंह की जयजयकार करना उन्हें वैचारिक फांसी देने की समान है .

---''हम वर्तमान ढांचे के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्रों में क्रन्तिकारी परिवर्तन लाने के पक्ष में हैं. हम वर्तमान समाज को पूरी तरह से एक नये सुसंगठित समाज में बदलना चाहते हैं और इस प्रकार मनुष्य के हाथों मनुष्य का शोषण असंभव बनाकर सभी के लिए सभी क्षेत्रों में पूर्ण स्वतंत्रता के हम पक्षधर हैं .
जब तक सारा सामाजिक ढांचा बदल नहीं जाता और उसके स्थान पर समाजवाद की स्थापना नहीं हो जाती तब तक हम समझते हैं पूरी दुनियां एक तबाह कर देने वाली प्रलय संकट में है, क्योकि हमारा विश्वास है की साम्राज्यवाद एक बड़ी डाकेजनी की साजिश के अलावा कुछ नहीं है ,साम्राज्यवाद मनुष्य के हाथों मनुष्य और राष्ट्र के द्वारा राष्ट्र के शोषण के अतिरिक्त और कुछ नहीं है.
वास्तव में साम्राज्यवादी शक्तियां अपनी स्वार्थ पूर्ति हेतु न सिर्फ न्यायालयों एवं कानूनों का कत्ल करते हैं अपितु भयंकर जन संहार और युद्ध जैसे खौपनाक अपराध करने से भी नहीं चूकते हैं. जहाँ कही लोग इनकी नादिरशाही शोषण की निति का विरोध करते है या फिर उन्हें मानने से इनकार कर देतें हैं तो ये निरपराधियों का भी खून बहाने में भी संकोच नहीं करते हैं और शांति व्यवस्था की आड़ में ये स्वयं शांति भंग करते हैं!''

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शेर तो एक ही था . शेरे पंजाब लाला लाजपत राय . सौन्डर्स की हत्या लाला पर हुए हमले का बदला चुकाने के लिए हुई थी . इस कार्रवाई में भगतसिंह शरीक थे . लेकिन भूलना न चाहिए कि असहयोग की नाकामी के बाद 1924के चुनावों के समय लाला का झुकाव हिंदूवादी राजनीति की ओर हो चला था . युवा भगत सिंह ने इस विचलन के लिए लाला की कठोर आलोचना करने में कोई देर न की . 'लॉस्ट लीडर ' शीर्षक लेख में ब्राउनिंग की एक कविता के हवाले से भगत सिंह ने लिखा - चांदी के चंद टुकड़ों के लिए उसने हमें छोड़ दिया ! जो पंजाब का शेर था , वो आज चूहा हो गया . ............................................... 
(आज भगत सिंह होते तो भारत माँ के 'हिंदूवादी ' शेरो के लिए क्या कहते !)

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