Sunday 8 September 2013

दंगे और राजनैतिक दंगल

आम जनता को साम्प्रदायिकता,जातिवाद ,प्रान्तीयता आदि की आग में झोंक कर आपस में फूट और विद्वेष को बढ़ावा देने का काम  सत्ता और सत्ता की सहायक संस्थाओं द्वारा सदा से किया जाता रहा है ताकि जनता छोटे-छोटे फिरकों में  विभाजित रहे आपस में लड़ती रहे ,कमजोर बनी रहे ,एक-दूसरे के प्रति भय और आशंका से ग्रस्त रहे | भय-आशंकाजनित वातावरण से घिरे विभाजित फिरकों  से ही एक चाटुकार इंसानी नस्ल पैदा होती है जिसका इस्तेमाल  विभ्रम और उन्माद फ़ैलाने के लिए सत्ता द्वारा किया जाता है |

धर्म जिसका प्रारंभिक उद्देश्य सत्य ,शुभ और सुन्दर की खोज करना था सत्ता के इशारे पर इस चाटुकार नस्ल के हाथों  में चला गया और उत्पादन में लगी हुई श्रमशील जनता के शोषण का एक उपकरण बन कर रह गया है |

देश में लोकतंत्र के नाम पर जो चुनावी संस्कृति  विकसित हो चुकी है उसमें जातीय और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण  के जरिये वोटर को समूहों में एकत्र करना और उन समूहों को अपने पक्ष में झुका लेना चुनाव में जीत का एक कारगर तरीका बन चुका  है जिसे कामो-बेश हर दल अमल में लाता है | इस साम्प्रदायिक  ध्रुवीकरण के लिए घुल-मिल कर रहने वाली शांतिपूर्वक अपनी रोजी-रोटी कमाती हुई जनता को अपने-अपने फिरकों में इकठ्ठा करना जरूरी है और इसके लिए जरूरी है उनमें भय,विद्वेष,और अविश्वास की भावना को भड़काना ... दंगा इसका एक कारगर तरीका है ,आवश्यकता पड़ने पर इसे अफवाहें फ़ैलाने वाली  एजेंसियों ,भाड़े के दंगाइयों की मदद से सुरक्षा-व्यवस्था निष्क्रिय करके अंजाम दिया जाता है |

मुजफ्फरनगर में  फैला दंगा  सत्ता के भूखे राजनैतिक दलों की महत्वाकांक्षा की जिन्दा मिसाल है |
आशा है देश की जनता इन बातों  को समझेगी और जातीय,सांप्रदायिक दुश्चक्र से अपने को मुक्त रख सकेगी |

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