Sunday 15 September 2013

बेरोजगारी का दंश झेलते युवा - बृजेश राव



नौजवान साथियो,

हमारे सामने बड़े संकट का समय है। आज हमारे और हमारे माता-पिता के सपने चूर-चूर हो रहे हैं। हमारे माता-पिता ने समना देखा था कि हमारा लड़का या लड़की आगे चलकर नौकरी करेगा, जिससे परिवार की गरीबी दूर होगी और उनका बुढ़ापा आराम से कटेगा। इसलिए उन्होंने दिन-रात महनत करके जितना हो सका पढ़ाया लिखाया। लेकिन इतना पढ़ लिखने के बाद भी आज नौकरी की कोई गारंटी नहीं है। आज हर साल लाखों युवा पढ़ लिखकर स्कूल-कालेजों से निकल रहे हैं लेकिन रोजगार मुश्किल से हजारों को मिल पा रहा है।

ऐसी स्थिति में आज का नौजवान हताशा और हीनभावना का शिकार हो रहा है। उसे लगता है कि हमें रोजगार नहीं मिल रहा है तो इसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं। माता-पिता भी यही समझते हैं कि लड़का मेहनत से नही पड़ता है इसलिये नौकरी नहीं मिल रही है। लेकिन प्यारे नौजवान साथियों इसके लिये न तो हम नौजवान जिम्मेदार है और न ही हमारे माता-पिता।

साथियो इसके लिऐ जिम्मेदार है हमारी सामाजिक व्यवस्था। हम सब नौजवान बचपन से सपना देखते है कि हम बड़े होकर नौकरी करेंगे और अपने माता-पिता को सुख देंगे। हम सोचते हैं कि नौकरी लगने पर हम अपनी बहन की शादी बड़े धूमधाम से करेंगे। हमारी इच्छा रहती है कि नौकरी लगने पर हम अपनी माता-पिता का ढंग से इलाज करायेगें लेकिन पढ़ लिखकर जब हम नौकरी की तलाश में निकलते हैं हमारे सारे सपने चकनाचूर हो जाते हैं। जब हमारे सपने चकनाचूर होते हैं तो हमारे चेहरे उतर जाते हैं और हम हीन भावना और कुण्ठा के शिकार हो जाते हैं। इस कुण्ठा से उबरने के लिए अक्शर हम नशे की ओर मुड़ जाते हैं। लेकिन ये सब करने से मुख्य समस्या का समाधान नहीं होता। हम जीवन भर गरीबी में जीते रहते हैं और हमारे परिवार के सदस्य कमजोर और बीमार सदस्य मौत के मुंह में समा जाते हैं। साथियो, कभी-कभी ऐसा भी होता है हम हमारे भाई-बहन, माता-पिता या बच्चे, बीबी बगैर इलाज के मर जाते हैं और हम पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ता है लेकिन इस दुःख को अमीर आदमी कैसे समझ सकता है क्योंकि जो आदमी पैरो में जूती पहने है, वह कैसे समझेगा कि नंगे पैरों में कील की चुभन कैसी होती है।

नौजवान साथियो, आइए हम समझते हैं कि हमारी बेरोजगारी के लिये वर्तमान सामाजिक व्यवस्था जिम्मेदार किस तरह है - 

सर्वप्रथम तो हमारे यहां जमीन का असमान वितरण है। किसी-किसी के पास तो इतनी जमीन है कि वह मजदूरों से काम करवाकर बड़े आराम से जीवन-यापन करता है। इसके साथ-साथ किसी-किसी के पास आय के अन्य बहुत से साधन होते हैं। यदि जमीन और आमदनी के अन्य साधनों का बटवारा ही सही ढंग से हो जाये 95 प्रतिशत बेरोजगारी खत्म की जा सकती है। जैसे जमीनों पर सिर्फ उन्हीं लोगों का हक हो जिन्हें इसकी जरूरत है और जो खेती का काम करना चाहते हैं। लेकिन आज हम देखते हैं कि एक आदमी है जिसके पास 500 बीघा जमीन है। उसी के पास पेट्रोल पम्प है, उसी के पास गैस एजेन्सी है, उसी के पास ठेकेदारी है, उसी के घर में नौकरियां है, इत्यादि। ऐसी स्थिति में सबको आमदनी के साधन कैसे मिलेंगे। इसलिये सबसे पहले होना चाहिए, जमीन का बंटवारा, उसके बाद आमदनी के अन्य साधनों का बंटवारा।

इसके अलावा एक समस्या यह भी है कि रोजगार का साधन तो है कि उससे इतनी आमदनी नहीं होती कि परिवार का खर्चा आराम से चल सके।

जैसे कुछ लोग फैक्ट्रियों-कारखानों में काम करते हैं लेकिन उन्हें इतना पैसा नहीं मिलता जिससे कि उनके परिवार का गुजारा आराम से हो सके। फैक्ट्री मालिक जब चाहे मजदूर को निकाल देता है और मजदूर दर-दर भटकने को विवश हो जाता है। मजदूर दिन-रात महनत करके अपने मालिक की सम्पत्ति बढ़ाता रहता है और इसी महनत के कारण पूंजीपति लखपति से खरबपति बन जाता है, लेकिन मजदूर खाकपति ही बना रहता है। मालिक के 10-10 फैक्ट्रियां और बंगले हो जाते है लेकिन मजदूर झोपड़े में ही जीवन जीता रहता है। 

नौजवान साथियो, सोचिए एसी स्थिति में हमारी बेरोजगारी, हमारे दुःखों के लिए जिम्मेदार कौन है? यदि आपको लगता है कि इसके लिए हमारी सामाजिक व्यवस्था जिम्मेदार है तो हमारा फर्ज बनता है कि हम ऐसी सामाजिक व्यवस्था को मिट्टी में मिला दें और एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करें, जिसमें कोई बेरोजगारी न हो, कोई दुःखों में न जिये।

नौजवान साथियो, अब कुछ करना ही होगा वरना कब तक हमारी पीड़ियाँ इन दुःखों को सहती रहेंगी। साथियो यदि हम सब मिलकर अपना हक लेने के लिए संघर्ष करने के लिए तैयार हो गये तो दुनिया की कोई भी ताकत नहीं है जो हमें हमारे अधिकारों को वंचित कर सके।

साथियो, आज हम सबको शहीद भगतसिंह बनने की आवश्यकता है, क्योंकि भगतसिंह ने भी शोषण विहीन समाज की स्थापना का सपना देखा था और आहवान किया था -

"यदि किसी देश की सरकार उस देश की जनता की बुनियादि सुविधाओं को पूरा करने में असफल हो तो उस देश की जनता का कर्तव्य ही नहीं बल्कि यह अधिकार बनता है कि वह ऐसी किसी भी सरकार को जड़ से उखाड़ फेंके।"

नौजवान शक्ति जिन्दाबाद

सम्पर्क-

बृजेश राव 

मो 0 9506341287


E-mail: brijeshrao.rao@gmail.com

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