Tuesday 1 October 2013

मृग-मरीचिका - गिरिजेश


प्रिय मित्र, 
हमारा समाज तरह-तरह की समस्याओं से जूझ रहा है. हमारी सारी समस्याएँ वास्तविक हैं. वे किसी काल्पनिक ईश्वर या प्रकृति के चलते नहीं हैं. उन सबका कारण हमारी वर्तमान सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक व्यवस्था में निहित है. आज जीवन के केन्द्र में मनुष्य नहीं है. मनुष्य की जगह केन्द्र में सिक्का है. सिक्का ही इस व्यवस्था का खुदा है. 

इस झपसट व्यवस्था के झाँसे में फँस कर थोड़ा-सा और, कुछ और कमा लेने की लालच के चलते आज हर एक इन्सान केवल सिक्के की गणेश-परिक्रमा में लीन है. गलत-सही किसी भी तरह से अधिक से अधिक धन-संग्रह ही आज जीवन की सफलता की परिभाषा बन गया है. आज केवल वह आदमी बड़ा आदमी कहा जाता है, जिसके पास अधिक पैसा है. वह पैसा कैसे आया - इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता और पैसा जब भी सामान्य ज़रूरत से बहुत अधिक जुटाया जाता है, तो वह हर तरह से लूट-खसोट करके केवल गलत तरीके से ही जुटाया जा सकता है. सही तरीके से खटने और कमाने पर तो किसी तरह ज़िन्दा रहना ही मुमकिन है. 

इस व्यवस्था को पूँजीवादी व्यवस्था कहते हैं क्योंकि इसमें मुट्ठी भर धनपशु करोड़ों लोगों की गरीबी की मजबूरी का लाभ उठा कर अधिक और अधिक अतिरिक्त पूँजी जुटाने के लिये सारे दंद-फंद करते हैं. इसके चलते ही सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती चली जा रही महँगाई डाइन है, जो हमारी मेहनत की कमाई को हड़प कर ले जाती है. इसी के चलते कार्य-सक्षम हाथ-पैर-दिमाग वाले युवा भीषण बेरोज़गारी की अपमानजनक परिस्थिति में फँसे हुए हैं. इसी के चलते हर कदम पर जारी भ्रस्टाचार का बजबजाता नरक है, जो हमें शार्टकट से काम करवा देने के लोभ में उलझा कर लगातार लूट रहा है. 

आज सामान्य जन-गण कांग्रेस की सरकार के धूर्त और पतित नेताओं की अधम हरकतों और बयानों से बुरी तरह से तंग हो चुका है. इसीलिये केवल इस पार्टी की सरकार को उस पार्टी की सरकार से - इस पार्टी के नेता को उस पार्टी के नेता से बदल कर राहत पा लेने के सपने मीडिया द्वारा बेचे जा रहे हैं. इन भ्रामक सपनों को साकार करने के चक्कर में हम में से जो भी लोग इस व्यवस्था के भीतर ही समाधान का रास्ता तलाशने के लिये इधर-उधर भटक रहे हैं. वे पूरी तरह से मासूम हैं. वे कभी रामदेव के पीछे चलते दिखाई देते हैं, तो कभी अन्ना और अरविन्द केज़रीवाल का दामन पकड़ कर वैतरणी पार करना चाहते हैं. 

ऐसे सभी मासूम युवा मात्र मृग-मरीचिका के शिकार हैं. मृग-मरीचिका में पानी नहीं होता, केवल पानी का भ्रम होता है. और प्यास से परेशान मृग इसी भ्रम में फँस कर इधर से उधर तब तक भागता रहता है, जब तक तड़प-तड़प कर उसके प्राण-पखेरू उड़ नहीं जाते. इन्सान का खून पीने वाली यह पैशाचिक व्यवस्था भी पीढी-दर-पीढ़ी हमारे जीवन-सत्व को निरन्तर चूसती रही है और तब तक चूसती रहेगी, जब तक हम इस परजीवी 'अमरबेल' को जड़ से उखाड़ कर फेंक नहीं देते. 

जब यह तन्त्र ही हर तरह से 'धनतन्त्र' है. यह किसी भी रूप में 'लोकतन्त्र' नहीं है. तो फिर तो यह तन्त्र ही जनविरोधी है और सभी जन-समस्याओं का कारण है. तो इसके किसी भी नेता के बस में है ही नहीं कि हमारी किसी भी समस्या का समाधान कर सके.

हमारे प्यारे देश-समाज की समस्या का समाधान न मोदी कर सकते हैं और न ही किसी भी दूसरी संसदीय पार्टी का कोई भी नेता. वे सभी के सभी आपस में मिलजुल कर राष्ट्र के जन-गण को नागनाथ और सांपनाथ की तरह मारक विष का दंश देते रहे हैं और देते रहेंगे. इस देश की जनता को मूर्ख बना कर इसे देशी-विदेशी पूँजी की चारागाह बनाये रखेंगे. इस देश की मेहनतकश जनता को केवल भीषण बेरोज़गारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और साम्राज्यवादी देशों के साथ असमान संधियाँ ही ये दे सकते हैं. 

समाधान केवल और केवल क्रान्ति के ज़रिये ही होना है और वह भी केवल शहीद-ए-आज़म भगत सिंह द्वारा दिखाये गये पथ द्वारा - जन-दिशा द्वारा जन-चेतना का विकास और विस्तार करके ही हो सकती है. 

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यह जनविरोधी व्यवस्था ध्वस्त हो - यही हमारी 'ज़िद' है.

तूफ़ानों से कह दो कि गुज़र जायें अदब से,
ये शम्म-ए-बग़ावत है बुझाना नहीं आसाँ...

है कौन-सी औकात, जो आ पाये मुख़ालिफ़, 
हर शै को चुनौती है जरा आजमा के देख! 

है साथ में इन्सानियत की सारी विरासत, 
ये मौत से टकराने के अरमान की ज़िद है; 

हम ख़ून बेचकर भी हैं रोटी नहीं पाते, 
तुम खू़न पिया करते हो और सुर्खरू भी हो! 

है ख़ून सुर्ख़, सुर्ख़ ही परचम है हमारा, 
अब फिर से ‘सुर्ख़ दौर’ दिखाने की ही ज़िद है; 

हम कब्र तुम्हारे ही लिए खोद रहे हैं, 
अब वक्त को बीमार बनाना नहीं आसाँ... 

अब और तंग-हाल नहीं जीयेगा इन्साँ... 
खुशहाल ज़माने को बनाने की ही ज़िद है। 

वह दौर अब करीब है जब सारे जहाँ में, 
दौलत को हुकूमत की जगह नहीं मिलेगी । 

ज़िद ने अगर हर बार ही इतिहास बनाया, 
फिर से नया इतिहास बनाने की ही ज़िद है । 

ढेर सारे प्यार के साथ - आपका गिरिजेश

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