Wednesday 9 October 2013

सुप्रीम 'पजेसिवनेस ' ?

उलझ गया हूँ . 
अगर कभी हमारी मलका -ए-हयात को हमारी वफादारी पर शको -शुबहा हो जाये ( अगर मान लिया जाए कि अब तक नहीं हुआ है ..) और वे हमें गोली मार दें और फिर हमारे मुर्दे को ले जा कर किसी तंदूर झोंक दें , तो इस से तीन बातें साबित होंगी --

----- वे हम से बेइंतहा प्यार करती हैं ,
----- वे हमारे लिये बेहद पजेसिव हैं जो कि उनके प्यार का एक और सबूत है 
---- इस प्यार की वज़ह से से अगर उन से कोई अपराध या क्रूरता कर बैठती हैं , तो यह एक निजी 'अपराध ' कहलायेगा . मेरे जैसे संदिग्ध बेवफा के कत्ल से कोई समाजी नुक्सान नहीं हुआ है !

आप सहमत नहीं हैं ?
तब अगर ऐसा ही मैं 'उन ' के साथ करूँ तो आप सहमत होंगे ?

मैं मृत्युदंड का पक्का विरोधी हूँ . इसलिए साहनी काण्ड में माननीय अदालत के फैसले का स्वागत करता हूँ . लेकिन इस फैसले के लिए जो तर्क दिए गए हैं , उन से दाम्पत्य , प्यार , पजेसिवनेस और अपराध के बारे में निखालिस बापिष्ट नजरिये पर सब से ऊंची अदालती मुहर बैठ गयी है , और यह फिक्र की बात है .

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