'लैंगिक-शोषण उन्मूलन' का रास्ता समाजवाद से होकर गुजरता है, ना की बुरजुआ महिलावाद से और ना ही बुरजुआ लोकतंत्र के भीतर.
स्त्री-हिंसा, जिसमे यौन-हिंसा (बलात्कार) शामिल है, दरअसल वो पुरषवादी समाज का एक उप-उत्पाद है. इसलिए फाँसी बलात्कार की केवल सज़ा हो सकती है, हल नही.
उसका हल है पुरषवादी मानसिकता , जो की मानसिक यौन-विकृति की जन्मदाता है, का ख़ात्मा. पर चूँकि स्त्री-पुरुषो के बीच शक्ति-स्त्रोतो का आसमान वितरण, पुरषवादी अहं और मानसिकता का जन्मदाता है, इसलिए बलात्कार की समस्या का हल प्रमुख रूप से 'शक्ति-स्त्रोतो की आसमान वितरण प्रणाली का ख़ात्मा' हो जाता है, पूंजीवाद का ख़ात्मा हो जाता है, समाजवाद की स्थापना हो जाता है.
जब तक एक लिंग-प्रधानता बनी रहेगी, तब तक बलात्कार भी विध्यमान रहेंगे, क्योंकि यहाँ पुरषवादी सोच नयी पीढ़ी को विरासत मे मिलती है, और इसकी झलक हमे हमारे राजनेताओ के बयानो मे भी मिल जाती है, जो महिलाओ के कपड़ो पर टीका-टिप्पणी करते रहते है.
एक समतामूलक समाज, जहाँ स्त्री और पुरुष दोनो को समान रूप से देखा जाता हो, समाज मे दोनो का समान प्रतिनिधत्व हो, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से भी, जहा एक लिंग-वाद मनुष्य को छूकर भी ना गया हो, ऐसे पर्यावरण मे पला-बड़ा भद्र पुरुष क्या ऐसी घिनौनी हरकत को अंजाम देगा ?
पर निम्न-आर्थिक वर्ग और खाप संस्कृति मे पला-बड़ा व्यक्ति, जो की खुद मानसिक विकृति का शिकार अंजाने मे ही हो जाता है, वो तो किसी लड़की को अपना शिकार बनाएगा ही, बना रहा है, बनाए जा रहा है.
आसमान वितरण प्रणाली के तहत विभिन्न वर्गो मे बँटा हमारा समाज क्या इसका दोषी नही है?
वो स्त्री उस पुरुष का शिकार होती है, उस पुरुष फाँसी दी जाती है, पर जब वो पुरुष इस व्यवस्था का शिकार होता है, तो उस व्यवस्था के लिए फाँसी क्यों नही?
जी नही, मैं बलात्कारियो की ओर से कोई आर्थिक जस्टीफिकेसन नही दे रहा हू.पर बलात्कार को प्रश्रय देनेवाली पूंजीवादी व्यवस्था की ओर ध्यान खींच रहा हू.बलात्कार के आरोपियों को तो फाँसी हो गयी, पर स्त्री-पुरुष के बीच शक्ति-स्त्रोतो का आसमान वितरण, जो की पुरुष-वादी अहं और मानसिक विकृति को प्रश्रय देता है, उसे फाँसी कब ?
बुरजुआ व्यवस्था तो ऐसे समतामूलक समाज की स्थापना नही कर सकती, इसका हल भी समाजवाद मे ही है.जब तक एकाधिकारी पूंजीवादी व्यवस्था बनी रहेगी, बलात्कार होते रहेंगे, प्रशासनिक सक्रियता कुछ हद तक, सिर्फ़ कुछ हद तक कम कर सकती है, ख़त्म नही.
कुछ महाशय कहते है - "बलात्कार तो तब भी होते थे जब पूंजीवाद का उदय भी नही हुआ था, इसलिए मैं बलात्कार को पूंजीवाद से नही जोड़ सकता"
परंतु महाशय, समाजवाद पूंजीवाद को ख़त्म करके शुरू होगा, पर वहाँ से नही जहाँ से पूंजीवाद शुरू हुआ था, बल्कि वहाँ से जहाँ पूंजीवाद ख़त्म होगा, इसलिए पूंजीवाद के पहले की व्यवस्था पर आधारित सभी तर्क यहाँ अर्थ-हीन हो जाते है. और मैं बलात्कार को पूंजीवाद से नही, समाजवाद से जोड़ कर देख रहा हू.
Kalpesh Patel <krdobariya@gmail.com> By : Kalpesh Dobariya
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