Mohan Shrotriya - "बात में #दम है ! पढ़ लेंगे, तो उम्मीद है, आप भी सहमत होंगे. #अकबर का अंदाज़े बयां जमेगा, आपको भी. तो पढ़ लीजिए...
*भगत सिंह को सप्रेम समर्पित, कांतिहीन और ढपोरशंखी क्रांति-पुराण का पारायण
-----------------------------------------------------------------------क्रांति कोई चूँ-चूँ का मुरब्बा नहीं
क्रांति डालडा का खाली डब्बा नहीं
क्रांति अद्धा, पौव्वा या सिक्का भी नहीं
क्रांति उद्घोष या नारों का नाम नहीं
झंडे को मीनार पर टाँगने का नाम नहीं
क्रांति कोई मादक गंध भी नहीं है कि
फूल से झड़ते शब्दों पर कोई हो जाए क़ुर्बान!
क्रांति का अर्थ है चेतना का जगना
क्रांति का अर्थ है विद्रोह का सुलगना
क्रांति का अर्थ है लोहे का अंगार बनना
लोहार की भाथी में डूबना और गलना
क्रांति का अर्थ कंधा और बंदूक की तलाश नहीं
क्रांति का अर्थ कंधा और बंदूक बनना है!
क्रांति उतावली में नहीं होती
क्रांति नारों की रूमानियत में नहीं होती
क्रांति महज झंडा टाँगने में नहीं होती
क्रांति सभाओं-सेमिनारों के शब्द फांकने में नहीं होती
क्रांति जंगल या रेगिस्तानों में नहीं होती
क्रांति के लिए तैयार करनी होती है ज़मीन
समाज में बीजनी होती है विचारों की फ़सल
रोटी की आपाधापी में बौराई भीड़ को संभाल
बनाना पड़ता है चेतन मानव-समूह
क्योंकि तभी जड़ होता है मज़बूत
बहुत बाद में नारे और झंडे आते हैं काम
और सुनो अगर इतना धैर्य नहीं है
नहीं है इतना सामर्थ और जीवट
नहीं है इतना विवेक तो मस्त रहो
तुम्हारी क्रांति है ख़ाली डिब्बा
दिन-रात बजाते रहो, बजाते रहो
*अकबर रिज़वी, क्रांति ऐसे नहीं आती
https://www.facebook.com/akbarizwi
अत्यंत अर्थपूर्ण कविता. क्रांति की तैयारी के लिए क्या-क्या ज़रूरी तत्व हैं, उनकी ओर बड़े तरीक़े से ध्यान खींचा है, कवि ने.
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